गँगा केवल यह शब्द ही तो नहीं,
अनंत युगों से धरम को धरा पर जीवंत रखने वाला प्रवाह ही तो माँ गंगा का प्रवाह है,
शबदो मे इतना सामर्थ्य कहाँ की भागीरथी की महिमा का गुण गान कर सके,
आप प्रत्यक्ष भगवती है तत्काल मुक्ति देनी वाली है रोग शोक ताप पाप को स्पर्श मात्र से हरने वाली है बस आज तो आपको वंदन ही करता हूँ, पिचले चार दिनों से जो आपका सेवन किया मे उससे धन्य हुआ
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