Saturday, February 19, 2011

श्री मद भगवत कथा के प्रथम श्लोकमे मे भगवान श्री कृष्ण के चरणों मे वंदन किया है वेद व्यास जी महाराज ने गोविन्द के चरणों में कोटि कोटि वंदन किया है क्योकि भगवान को प्रणाम करने से देह ,मन व चेतना की भी शुधि होती है यहाँ भगवन के स्वरुप का वर्णन किया है की प्रभु आप ही सत चित और आनंद के स्वरुप है
आपके दर्शन स्मरण कीर्तन, स्पर्श से ही जीवन का कल्याण हो जाता है आपके भक्त की सरीर मन व आत्मा का कल्याण होता
नमस्कार ,प्रणाम वंदन हमारी संस्कृति है ,नमन यानि जीवन की पाठ शाला मे प्रवेश होता है
श्री मद भगवत जी के द्वितीय श्लोक ...श्री शुक देव जी को प्रणाम किया है वह इस प्रकार है -
जो जनम से ब्रहमचारी है , आपका अभी तक उपनयन संस्कार भी नहीं हुआ है
औप को किसी का उपदेश भी नहीं हुआ है आप सीधे ही वन की ओर जा रहे है ,ऐसे मे आपके पिता व्याकुल होकर आपके विरह मे बेटा बेटा पुकारते है ,
किन्तु आप तो संसार के रिश्तो को भी नहीं जानते है
तब आपकी की ओर से पेड़ो ने उतर दिया
"ऐसे सब पञ्च भूतो मे विराजमान शुकदेव मुनि को नमस्कार है
Satsang (सत्संग)

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गुरु बिनु भवनिधि तर‍इ न कोई ।
जो बिरंचि संकर सम होई ॥

“Without guidance no one can swim across the vast ocean-like life. One definitely needs a guru to direct one to the right path.”
— Tulsidasji (Ramcharitmanas, Uttarkand)

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