Sunday, February 27, 2011

माँ गंगा

गँगा केवल यह शब्द ही तो नहीं,
अनंत युगों से धरम को धरा पर जीवंत रखने वाला प्रवाह ही तो माँ गंगा का प्रवाह है,
शबदो मे इतना सामर्थ्य कहाँ की भागीरथी की महिमा का गुण गान कर सके,
आप प्रत्यक्ष भगवती है तत्काल मुक्ति देनी वाली है रोग शोक ताप पाप को स्पर्श मात्र से हरने वाली है बस आज तो आपको वंदन ही करता हूँ, पिचले चार दिनों से जो आपका सेवन किया मे उससे धन्य हुआ


Saturday, February 19, 2011

आरती श्री गिरिराज धरन की

हे गिरधर तेरी आरती गाऊँ , मेरे बांके बिहारी तेरे आरती गाऊँ
आरती गाऊ प्यारे तुज्को रिन्झाऊ मेरे श्याम सुन्दर तेरे आरती गाऊँ
मोर मुकुट तेरे शीश पे सोहे प्यारे बंसी मेरो मन मोहे देख छवि बलि हरी जाऊं
मै देख छवि बलि हारी जाऊं ,
चरणों से निकसी तेरे गंगा प्यारी जिसने सारी दुनिया तारी
उन चरणों पे जीवन वारु -२
नन्द-नंदन तेरी आरती गाऊँ
नाथ अनाथ के नाथ आप सुख दुःख जीवन संग साथ हो
तेरे चरणों मै जीवन वारू
मै तेरे चरणों मै जीवन वारू....
संग मै राधा प्यरी सुहावे
ललिता और सखियन की संगी
युगल छवि पर बलि बलि जाऊं
बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ ,
कुंजबिहारी तेरी आरती गाऊँ ,
श्यामसुंदर तेरी आरती गाऊँ ,
रासबिहारी तेरी आरती गाऊँ ,
यशोदा के लाला तेरी आरती गाऊँ .





श्री मद भगवत कथा के प्रथम श्लोकमे मे भगवान श्री कृष्ण के चरणों मे वंदन किया है वेद व्यास जी महाराज ने गोविन्द के चरणों में कोटि कोटि वंदन किया है क्योकि भगवान को प्रणाम करने से देह ,मन व चेतना की भी शुधि होती है यहाँ भगवन के स्वरुप का वर्णन किया है की प्रभु आप ही सत चित और आनंद के स्वरुप है
आपके दर्शन स्मरण कीर्तन, स्पर्श से ही जीवन का कल्याण हो जाता है आपके भक्त की सरीर मन व आत्मा का कल्याण होता
नमस्कार ,प्रणाम वंदन हमारी संस्कृति है ,नमन यानि जीवन की पाठ शाला मे प्रवेश होता है
श्री मद भगवत जी के द्वितीय श्लोक ...श्री शुक देव जी को प्रणाम किया है वह इस प्रकार है -
जो जनम से ब्रहमचारी है , आपका अभी तक उपनयन संस्कार भी नहीं हुआ है
औप को किसी का उपदेश भी नहीं हुआ है आप सीधे ही वन की ओर जा रहे है ,ऐसे मे आपके पिता व्याकुल होकर आपके विरह मे बेटा बेटा पुकारते है ,
किन्तु आप तो संसार के रिश्तो को भी नहीं जानते है
तब आपकी की ओर से पेड़ो ने उतर दिया
"ऐसे सब पञ्च भूतो मे विराजमान शुकदेव मुनि को नमस्कार है
Satsang (सत्संग)

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गुरु बिनु भवनिधि तर‍इ न कोई ।
जो बिरंचि संकर सम होई ॥

“Without guidance no one can swim across the vast ocean-like life. One definitely needs a guru to direct one to the right path.”
— Tulsidasji (Ramcharitmanas, Uttarkand)